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👉 *-ओवरियन कैंसर मरीजों के लिए आशा की किरण बनी हाईपेक तकनीक*
डोईवाला, 02 मार्च। उत्तराखंड में पहली बार हिमालयन हॉस्पिटल जॉलीग्रांट के कैंसर रिसर्च इंस्टिट्यूट में ओवेरियन कैंसर से जूझ रही दो महिलाओं का हाईपेक तकनीक से ऑपरेशन किया गया। इससे इस तरह के कैंसर के मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण भी जगी है।
हिमालयन हॉस्पिट जॉलीग्रांट में कैंसर रिसर्च इंस्टिट्यूट के चिकित्सकों ने ओवेरियन कैंसर से जूझ रही दो महिलाओं में साइटो रिडक्टिव सर्जरी (सीआरएस) एवं हाईपेक तकनीक का प्रयोग कर उन्हें जीवनदान दिया। उत्तराखंड में पहली बार इस तकनीक के माध्यम से ओवरियन कैंसर का उपचार किया गया। सीआरआई के निदेशक डॉ.सुनील सैनी ने बताया कि रुड़की से रेशू देवी (उम्र 65 वर्ष) व हल्द्वानी से अकिला
(उम्र 51 वर्ष) ओपीडी में ओवरियन कैंसर से जूझ रही महिला परामर्श के लिए पहुंची। कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ.आकाश गेंद, डॉ.श्रुति चौहान, डॉ.राहुल मोदी की टीम ने जांच के दौरान पाया कि दोनों महिलाओं में ही कैंसर तीसरे चरण (एडवांस स्टेज) में पहुंच गया है। मरीज की पूरी स्थिति पर विचार करने के बाद हाईपेकक तकनीक अपनाने का फैसला लिया। हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनल कीमोथेरेपी (एचआइपीईसी) के जरिए सर्जरी के बाद पेट में बचे कैंसरग्रस्त छोटी-छोटी गांठों को नष्ट किया गया। इससे मरीज को लंबा व गुणवत्तापरक जीवन मिलता है।
👉 *देश के चुनिंदा अस्पतालों में ही हाईपेक सुविधा मौजूद*
कैंसर विशेषज्ञ डॉ.आकाश गेंद, ने बताया कि अभी तक देश के चुनिंदा महानगरों में ही बेहद कीमती दर पर इस तकनीक से उपचार किया जाता था। अब हिमालयन हॉस्पिटल जॉलीग्रांट के कैंसर रिसर्च इंस्टिट्यूट में भी कैंसर से जूझ रही महिलाओं के लिए हाईपैक तकनीक से उपचार की सुविधा रहेगी।
👉 *क्या होती है हाईपेक तकनीक*
कैंसर विशेषज्ञ डॉ.आकाश गेंद, व डॉ.श्रुति चौहान ने बताया कि पारंपरिक कीमोथेरेपी में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए सर्जरी के बाद नस के जरिए दवा को रक्त में पहुंचाया जाता है। हाईपेक तकनीक में सर्जरी के बाद पेट में कैंसर की दवा पहुंचाई जाती है। इसमें हाईपेक मशीन का प्रयोग होता है। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गाइडलाइन बनी है। मरीज में पहले साइटो रिडक्टिव सर्जरी (सीआरएस) के जरिए गर्भाशय, अंडाशय और आंतों का कुछ हिस्सा, पेरीटोनियम, लिम्फ नोड्स को हटाया जाता है। इसके बाद हाईपेक तकनीक से सर्जरी के दौरान कीमोथेरेपी दी जाती है। इससे शरीर में कैंसरग्रस्त बची कोशिकाओं पर तत्काल दवा का असर होता है। इस तकनीक में मरीज को सही मात्रा में दवा देना और सही तापमान देना चुनौतीपूर्ण होता है। एनेस्थेटिस्ट डॉ. प्रिया रामा कृष्णन ने बताया कि इस तकनीक में मरीज को बेहोशी देना भी चुनौती भरा होता है। सर्जरी के बाद पोस्ट आपरेटिव वार्ड में पल-पल की निगरानी करनी पड़ती है।
👉 *यह रही टीम*
सीआरआई के निदेशक डॉ.सुनील सैनी के नेतृत्व में सर्जरी करने वाली टीम में डॉ. आकाश, डॉ. श्रुति चौहान, डॉ.राहुल, एनेस्थेटिस्ट डॉ. प्रिया रामा कृष्णन, डॉ.राजीव भंडारी, डॉ.मेघा बिष्ट आदि शामिल रहे।
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