स्वास्थ्य

न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में नींद प्रभावित होती है : निदेशक रविकांत


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ऋषिकेश, 20 मार्च। नींद का हमारे शरीर के संतुलित व्यवहार और देखरेख के लिए अत्यधिक महत्व है। हालांकि यह एक रहस्य ही है कि नींद क्यों, कैसे और कहां से संचालित होती है और किस प्रकार उपरोक्त कार्य को निष्पादित करती है, मगर काफी हद तक इसमें मस्तिष्क के कुछ अहम हिस्सों जैसे हाइपोथालामस, पीनियल ग्रंथि और रेटिकूलर एक्टिवेटिंग सिस्टम और उनसे निकलने वाले न्यूरो केमिकल मैसेंजेर का जटिल सूचना तंत्र संलग्न है, लिहाजा जाहिर सी बात है कि न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से नींद का गहरा संबंध है, जो कि दोतरफा है यानि कि एक तरफ जहां न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में नींद प्रभावित होती है वहीं दूसरी ओर नींद की गड़बड़ी कई न्यूरोलॉजिकल बीमारियों को या तो जन्म देती है या उनकी गंभीरता को कई गुना बढ़ा देती है।                                                                                                                                                    अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी के निर्देशन में संबंधित बीमारियों से मरीजों को निजात दिलाने के लिए उपचार एवं शोधकार्य जारी है। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत  ने न्यूरोलॉजी विभाग एवं निद्रा रोग प्रभाग द्वारा इस दिशा में किए जा रहे कार्यों की सराहना की और उम्मीद जताई कि निद्रा रोग प्रभाग आने वाले वर्षों में उत्तराखंड एवं आसपास के राज्यों के निद्रा रोग से ग्रसित मरीजों के लिए एक वरदान साबित होगा।                                                                                                                             आइए कुछ महत्वपूर्ण न्यूरोलॉजिकल रोगों से नींद के संबध को बिंदुवार एक-एक कर समझते हैं।                                                                                                                                                                                                                                                                                एम्स ऋषिकेश के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष एवं निद्रा रोग प्रभाग के सदस्य डा. नीरज कुमार  के अनुसार  लगभग 50 प्रतिशत स्ट्रोक के मरीज नींद की समस्या से ग्रसित होते हैं. इतनी बड़ी संख्या क्यों? मोटापा, खून में वसा की मात्रा, निष्क्रिय दिनचर्या, धुम्रपान यह सब जिस प्रकार से धमनियों की बीमारियों को बढ़ाते हैं, वैसे ही ओब्सट्रकटिव स्लीप एपनिया की संभावना को भी बढ़ा देते हैं। करीब 20 फीसदी स्ट्रोक के मरीजों को शिकायत होती है कि उन्हें नींद का नहीं आने, नींद के जल्दी टूट जाने या दिन में भी सुस्ती आने आदि समस्याएं हैं।                                                                                                                                                                          यानि कुल मिलाकर नींद की संपूर्ण प्रणाली का ही त्रुटिपूर्ण हो जाना। इसकी मूल वजह में स्ट्रोक के बाद होने वाले अवसाद या दवाइयों के साइड इफेक्ट हो सकते हैं। थैलामस और ब्रेन स्टेम में होने वाले स्ट्रोक भी नींद के नियंत्रण केंद्र को क्षति पहुंचाकर नींद के क्रम को बिगाड़ सकते हैं।
उन्होंने बताया कि  स्ट्रोक के मरीजों में नींद की समस्या आम रहती है, मगर निदान या उपचार गिने चुने लोगों का ही हो पाता है, इसका कारण चाहे स्ट्रोक से ग्रसित मरीज के बोलने की शक्ति का कम होना हो या अपाहिज होकर बिस्तर पर पड़े रहने के चलते उनकी नींद से जुड़ी समस्या पर किसी का ध्यान नहीं जाना हो, मरीज का उपचार करने वाले चिकित्सक भी कई बार उसकी नींद से संबंधित समस्या से अन​भिज्ञ होते हैं या कभी- कभी उसे नजरअंदाज कर देते हैं, मगर ध्यान रहे कि नींद की गड़बड़ी दोबारा स्ट्रोक अटैक की आशंका को करीब 25 फीसदी तक बढ़ा देती है।                                                                                                                                                                                                                    विशेषज्ञ चिकित्सक डा. नीरज कुमार जी का कहना है कि मिर्गी या मूर्छा का भी नींद से सीधा- सीधा संबंध है। सुप्तावस्था में इलेक्ट्रो इनसेफलोग्राम            ( EEG) में दौरों को दर्शाने वाले विद्युत तरंग ज्यादा दृष्टिगोचर होते हैं, करीब 50 फीसदी जेनेरलाइज्ड एपिलेप्सी के अटैक रात के समय ही ज्यादा आते हैं। इसकी वजह से भी मरीज पर्याप्त मात्रा में नींद नहीं ले पाता। किशोरावस्था से शुरू होने वाली मयोक्लोनिक एपिलेप्सी के अटैक बढ़ जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ मिर्गी के मरीजों की नींद अक्सर प्रभावित हो जाती है, अब चाहे वह दवाइयों की वजह से हो या बीमारी से उपन्न होने वाले अवसाद, घबराहट या डर के कारण से अथवा फिर मिर्गी की बीमारी के मूल कारण इसकी प्रमुख वजह हो। कईबार तो निद्रा विकार जिनमें स्वप्न विकार भी शामिल हैं, इन विकारों व मिर्गी के दौरों से अंतर करना बहुत मुश्किल काम होता है, नतीजतन अक्सर मरीज जल्द स्वास्थ्य लाभ के लिए उपचार कराने की बजाए वर्षों तक झाड़-फूंक का सहारा लेते रहते हैं।
👉 *सर दर्द*
सर दर्द खासकर माइग्रेन का नींद से गहरा सम्बन्ध है। तेज सर दर्द के वक्त नींद नहीं आती और अक्सर नींद पूरी नहीं होने पर सर दर्द कईगुना अधिक बढ़ जाता है। कईदफा दवाइयों से भी ठीक नहीं होने वाले सर दर्द सिर्फ नींद के इलाज से ही ठीक हो जाते हैं। वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला है कि माइग्रेन और नींद के नियंत्रण केंद्र आसपास ही होते हैं। इस कारण से भी दोनों का परस्पर संबंध होता है।

मल्टीप्ल स्क्लेरोसिस जैसे इम्युनिटी सिस्टम( प्रतिरक्षा तंत्र) के रोगों में रेस्टलेस लेग सिंड्रोम, सेंट्रल स्लीप एपनिया, दिनभर की थकान-सुस्ती, दिन में भी नींद की अधिकता और नींद के क्रम के टूटने जैसी बीमारियां आम हैं, कभी कभी नींद में चलने ,बोलने या चलते-चलते नींद के आगोश में चले जाना जिसे  नार्कोलेपसी भी कहते हैं, इन लक्षणों से मल्टीप्ल स्क्लेरोसिस की पहचान होती है। आश्चर्यजनक बात यह है कि अबुझ पहेली से लगने वाले यह लक्षण सही समय पर इलाज लेने से पूरी तरह ठीक भी हो जाते हैं।
पार्किन्सन व डेमेंटिया –                                                                                                                                                                                                    पार्किन्सन और डेमेंटिया जैसे रोग जिनमें मस्तिष्क धीरे- धीरे सूखने लगता है या समय से पहले वृद्ध होने लगता है, इनमे नींद की समस्या काफी अधिक मिलती हैं। इसका कारण कभी दवाइयों का दुष्प्रभाव होता है तो कभी अवसाद के कारण से ऐसी समस्या उत्पन्न होती है। मगर अक्सर यह बीमारियां खुद ही नींद की समस्या को साथ लाती हैं।  रेस्टलेस लेग सिंड्रोम या नींद में बोलने लगना – हाथ पैर चलाना यह ऐसे लक्षण हैं जो, कई बार पार्किन्सन रोग के मुख्य लक्षण आने से वषों पहले से ही व्यक्ति में दिखने लगते हैं, ऐसे में सजग न्यूरोलॉजिस्ट इस तरह के रोगों की सटिक पहचान करके बीमारी को शुरुआती दौर में ही पहचान लेते हैं।
नसों और मांसपेशियों के मरीजों में फेफड़ों की शक्ति भी क्षीण हो जाती है। अक्सर यह मरीज नींद के दौरान जबकि श्वसन की सहायक मांसपेशियां शिथिल हो जाती है, ऐसे में वह अपने शरीर में ऑक्सीजन की सही मात्रा बनाए रखने में विफल होते हैं. कईबार इस अवस्था में मरीजों की मौत भी हो जाती है, पर अगर समय से इनकी पहचान हो जाए और सी-पैप जैसी साधारण मशीन जो कि सांस अंदर खींचने में मदद करती है, का प्रयोग किया जाए तो ऐसी अप्रिय घटनाओं को टाला जा सकता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि नींद न सिर्फ खूबसूरत सपनों के लिए आवश्यक हैं बल्कि शरीर को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए भी उतनी ही जरुरी क्रिया है। न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से ग्रसित लोगों के लिए तो न सिर्फ रोग की गंभीरता को रोकने के लिए बल्कि नए रोगों को उत्पन्न होने से रोकने व उनसे बचने के लिए साफ सुथरी, स्वस्थ निद्रा की और भी अधिक आवश्यक है।


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