
दुर्गेश मिश्रा
उत्तराखण्ड की सत्ता में सरल स्वभाव के तीरथ सिंह की ताजपोशी के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में एक बार फिर से जोश भर गया था। अपने अल्प कार्यकाल के दौरान ही तीरथ प्रदेश में जनप्रिय सीएम के रूप में उभरकर सामने आए थे। त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान प्रदेश की भाजपा सरकार पर जो दाग लगे थे। उन्हे अल्प कार्यकाल काल के दौरान ही तीरथ ने धोने का काम किया था। किन्तु जनप्रिय सीएम के रूप में उभरने वाले सीएम तीरथ को पार्टी आलाकमान की अदूरदर्शिता का शिकार होना पड़ा। जिससे भाजपा कार्यकर्ताओं में फिर से हताशा और निराशा का माहोल देखने को मिल रहा है।
तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि, मुख्यमंत्री के इस्तीफा देने के बाद अब सवाल ये उठता है कि क्या देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को आर्टिकल 164-। और 151 की जानकारी नहीं थी। हम ये बात यूं ही नहीं कह रहे बल्कि प्रदेश में मौजूदा राजनीतिक समीकरण ही इस बात की ओर ही इशारा कर रहे हैं। बता दें कि, 10 मार्च को तीरथ सिंह रावत ने बतौर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। हालांकि उस दौरान, विधानसभा चुनाव को एक साल का वक्त बचा था। लेकिन गलतफहरी की शिकार होने के चलते बीजेपी ने आर्टिकल 164-। और 151 पर ध्यान नहीं दिया। जिसके चलते आज तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा देना पड़ा। आर्टिकल 164-। कहता है कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के 6 महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना अनिवार्य है। आर्टिकल 151 कहता है कि विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का समय बचने पर उपचुनाव नहीं कराए जा सकते।
जी हां, तीरथ सिंह रावत ने सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद प्रेसवार्ता में इसी संवैधानिक संकट की बात कह रहे थे। राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी तो है, लेकिन उन्हें नियमों का ज्ञान नहीं है। जिसके चलते पहले तो तीरथ सिंह रावत के ऊपर उत्तराखंड के सीएम का पद थोपा गया और फिर इस्तीफा ले लिया गया। बताया जा रहा है कि बीजेपी ने सबसे बड़ी गलती ये किया कि तीरथ सिंह रावत को सल्ट विधानसभा सीट से उपचुनाव नहीं लड़ाया। क्योंकि अगर सल्ट विधानसभा सीट से तीरथ सिंह रावत को उपचुनाव लड़ाया जाता तो शायद आज ये नौबत नहीं आती।