उत्तराखंडखाना-खजाना
बाजार में जॉब तो हैं, लेकिन योग्य हाथों की कमी है
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(नरविजय यादव)
डिजिटल टैक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल के कारण मार्केट में आईटी प्रोफेशनल्स की मांग बढ़ रही है। प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, ई-कॉमर्स और मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर में रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं। प्रौद्योगिकी में भी इन्फॉर्मेशन टैक्नोलॉजी (आईटी) के क्षेत्र में जॉब्स के दरवाजे ज्यादा तेजी से खुले हैं। आईटी सेक्टर में जिस तरह से अनुभवी पेशेवरों की मांग बनी हुई है, उस हिसाब से योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पा रहे हैं। चूंकि जैसे चाहिए वैसे कर्मचारी जल्दी मिलते नहीं, इसलिए आईटी कंपनियां अपने योग्य कर्मचारियों को जोड़े रखने के लिए तनख्वाह बढ़ाने का इरादा रखती हैं। कंपनियां नहीं चाहतीं कि उनके मौजूदा कर्मचारी कहीं और चले जायें। एचसीएल ने तो कर्मचारियों को अपने यहां रोके रखने की रणनीति के तहत 3000 वरिष्ठ कर्मियों को कंपनी में हिस्सेदारी देने का प्लान बनाया है।
पिछले कुछ माहों में इन्फॉर्मेशन टैक्नोलॉजी (आईटी) कंपनियों में भर्ती प्रक्रिया में तेजी दर्ज हुई है। देश की चार शीर्ष आईटी कंपनियों ने अप्रैल-जून, 2021 में 48,000 से अधिक नये कर्मचारियों की नियुक्ति की। जुलाई-सितंबर के दौरान नयी नियुक्तियों की संख्या का आंकड़ा बढ़ कर 54,000 हो गया। इस तरह 1 लाख से अधिक युवाओं को आईटी जॉब मिले। चारों कंपनियां अगले छह माह में 1 लाख नये जॉब देने का इरादा रखती हैं।
एचआर कंपनी टीमलीज की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि आईटी इंडस्ट्री में एट्रिशन रेट यानी नौकरी छोड़ने की दर में लगातार वृद्धि हो रही है। आईटी सेक्टर में औसत एट्रिशन रेट 8.67 प्रतिशत है, जबकि भारत में एट्रिशन रेट औसत से ढाई गुना अधिक है। जुलाई-सितंबर तिमाही के नतीजों के अनुसार, विप्रो में एट्रिशन रेट सर्वाधिक 20.5 है। इन्फोसिस 20.1 प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर है, जबकि आईटी की सबसे बड़ी कंपनी टीसीएस 11.9 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर है। बढ़ते एट्रिशन के साथ आईटी कंपनियों में रोजगार के अवसर निरंतर बढ़ रहे हैं। टीसीएस ने पहली तिमाही में 43 हजार और दूसरी तिमाही में एट्रिशन के बाद भी लगभग 20 हजार नये कर्मचारियों की भर्ती की। अगले छह माह में कंपनी का इरादा 35,000 और फ्रेशर नियुक्त करने का है। विप्रो और इन्फोसिस में भी तेजी से नियुक्तियां हुई हैं।
जून के बाद जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी, रोजगार की स्थिति में सुधार दिखता गया। अनुमान है कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान भारत में 1 करोड़ से अधिक लोगों का रोजगार छिन गया। दुनिया में सब कुछ अस्थायी है, यह एक सर्वमान्य सच बन चुका है। वक्त के हिसाब से फटाफट बदलाव को तैयार रहने वाली कंपनियों में रोजगार के अवसर बढ़े हैं, जबकि सही वक्त का इंतजार करने वाली कंपनियों में हालात ठीक नहीं हैं।
महामारी के दौर में जब कारखाने और दफ्तर लंबे समय तक बंद रहे, तब वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति ने जन्म लिया। फ्लेक्सी वर्क की जरूरत तो एक अरसे से महसूस की जा रही थी, लेकिन कोई पहल करने को राजी नहीं था। सड़कों पर लगते लंबे-लंबे जाम, यातायात के साधनों पर पड़ते दबाव और प्रदूषण से स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभाव के नाते दूरी पर स्थित कार्यालयों में पहुंचना एक दुरूह समस्या रही है। वर्क फ्रॉम होम से दूर-दराज और छोटे शहरों के युवाओं को भी बड़ा लाभ हुआ है। महिलाओं को सबसे ज्यादा लाभ हुआ है।
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