
*एसआरएचयू : सेवा के मंदिर ने समझी जल की हर बूंद की अहमियत*
*-विश्व जल दिवस (मंगलवार, 22 मार्च 2022)*
डोईवाला- स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) जॉलीग्रांट की प्रयोजित संस्था हिमालयन इंस्टिट्यूट हॉस्पिटल ट्रस्ट (एचआईएचटी) का जल आपूर्ति व संरक्षण के लिए ‘भगीरथ’ प्रयास जारी है। विश्वविद्यालय के कैंपस में रोजाना 07 लाख लीटर पानी रिसाइकिल कर सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। संस्था द्वारा विश्वविद्यालय से बाहर भी द्वारा देशभर 550 गांवों में स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता योजनाओं का निर्माण करवाया गया है। साथ ही 7000 हजार लीटर क्षमता के लिए 600 से ज्यादा जल संरक्षण टैंकों का निर्माण एवं 71 ग्रामों में जल संवर्धन का कार्य करवाया गया।
*टॉयलेट की टंकी में एक बोतल से बचाएंगे सलाना एक करोड़ लीटर पानी*
एसआरएचयू के कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि विश्व जल दिवस के उपलक्ष्य में मंगलवार से विश्वविद्यालय कैंपस में जल संरक्षण के लिए अभिनव पहल शुरू की जा रही है। इस नवीन योजना के मुताबिक एक लीटर वाली खाली बोतल को आधा रेत या मिट्टी से भरकर ढक्कन लगा दिया जाएगा। उसके बाद उसे टॉयलेट की सिस्टर्न (फ्लश टंकी) के भीतर बोतल रख दी जाएगी। इससे सिस्टर्न में बोतल के आयतन (एक लीटर) के बराबर पानी कम आएगा। यानी जब भी आप फ्लश चलाएंगे तो एक लीटर पानी की बचत होगी। इससे सिस्टर्न की कार्यकुशलता पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने बताया कि एक टॉयलेट में औसतन प्रतिदिन 15 बार फ्लश इस्तेमाल की जाती है। इस प्रकार प्रतिदिन 15 लीटर पानी की बचत होगी। कैंपस में करीब 2000 शौचालय हैं। इस तरह औसतन रोजाना 30,000 लीटर जबकि साल में औसतन एक करोड़ लीटर पानी बचा पाएंगे। जमीन से एक लीटर पानी को निकालने के लिए करीब 3 रुपये खर्च होते हैं। इस तरह सालाना एक करोड़ लीटर पानी बचाकर हम 3 करोड़ रुपए की बचत भी कर पाएंगे।
*23 वर्ष पहले ही वाटसन का गठन*
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि यह अच्छा संकेत है कि पानी की महत्ता को आज कई संस्थान समझ रहे हैं। लेकिन, हमारे संस्थान में 23 वर्ष पहले ही जल आपूर्ति व संरक्षण के लिए एक अलग वाटसन (वाटर एंड सैनिटेशन) विभाग का गठन किया जा चुका है। तब से लेकर अब तक वाटसन की टीम द्वारा उत्तराखंड के सुदूरवर्ती व सैकड़ों गांवों में पेयजल पहुंचाया जा चुका है।
*एचआईएचटी है जल शक्ति मंत्रालय के साथ सेक्टर पार्टनर*
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने एचआईएचटी को राष्ट्रीय जल जीवन मिशन के ‘हर घर जल योजना’ के सेक्टर पार्टनर के तौर पर नामित किया है। यह एक दिन या महीने भर की मेहनत का नतीजा नहीं है, बल्कि सालों से जल संरक्षण के क्षेत्र में एचआईएचटी टीम के द्वारा किए गए बेहतरीन प्रयास की सफलता है। इसके तहत एसआरएचयू के एक्सपर्ट 24 राज्यों के पब्लिक हेल्थ इंजीनियर्स को ट्रेनिंग दे रहे हैं।
*रोजाना 07 लाख लीटर पानी रिसाइकल*
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि एसआरएचयू कैंपस में करीब 1.25 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाया गया है। इस प्लांट के माध्यम से 07 लाख लीटर पानी को रोजाना शोधित किया जाता है। शोधित पानी को पुनः कैंपस में सिंचाई व बागवानी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भविष्य में इस प्लांट की क्षमता बढ़ाकर इसी शोधित पानी को शौचालय में भी इस्तेमाल को लेकर हम कार्य कर रहे हैं।
*वाटर लेस यूरिनल से बचाते हैं सलाना लाखों लीटर पानी*
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने कहा कि जल संरक्षण के लिए हमने एक और कारगर शुरुआत की है। विश्वविद्यालय के सार्वजनिक शौचालयों में अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित वाटर लेस यूरिनल लगवाए जा रहे हैं। शुरुआती चरण में अभी तक 100 से ज्यादा वाटर लेस यूरिनल लगाए जा चुके हैं। भविष्य में इस तरह के वाटर लेस यूरिनल कैंपस के सभी सार्वजनिक शौचालयों में लगवाए जाएंगे। स्वच्छता के दृष्टिकोण से भी यह बेहतर है। अमूमन एक यूरिनल से हम प्रतिवर्ष लगभग 1.50 लाख लीटर पानी को बर्बाद होने से बचाते हैं।
*12 रेन वाटर हार्वेस्टिंग रिचार्ज पिट बनाए गए*
कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने बताया कि बरसाती पानी के सरंक्षण के लिए एसआरएचयू कैंपस में वर्तमान में करीब 50 लाख रुपये की लागत से 12 रेन वाटर हार्वेस्टिंग रिचार्ज पिट बनाए गए हैं। इन सभी से सलाना करीब 40 करोड़ लीटर बरसाती पानी को रिचार्ज किया जा सकता है। डॉ. धस्माना ने बताया कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग रिचार्ज पिट के बहुत फायदे हैं। ऐसा करने से बरसाती पानी आसानी से जमीन में चले जाता है, जिस कारण जमीन में पानी का स्तर बना रहता है।
*चार चरणों में होता पानी रिचार्ज*
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि कैंपस में वर्षा जल को पुन: विभिन्न विधियों द्वारा चार चरणों में संचय किया जाता है।
प्रथम चरण में कैंपस में वर्षा के जल को रेन वाटर पाइप के द्वारा एकत्रित कर उसे एक चैम्बर में डाला जाता है। इस चैम्बर में एक जाली लगी होती है, जिसमें घास-फूस व पत्ते आदि जल से अलग हो जाते हैं।
दूसरे चरण में, जल चैम्बर के अंदर जाली से छनकर पाइप के द्वारा फिल्टर टैंक में पहुंचाया जाता है।
तीसरे चरण में, जल को फिल्टर टैंक में डाला जाता है। यहां पर भी तीन चैम्बर होते हैं। पहले में जल अंदर जाता है, दूसरे में फिल्टर मीडिया से होकर साफ होते हुए तीसरे चैम्बर में एकत्रित होता है।
चौथे चरण में, जल फिल्टर टैंक से निकलकर रिचार्ज पिट या रिचार्ज बोर वेल के अंदर चला जाता है। जिससे कि इस जल को जमीन के अंदर सचयन करते हैं। जो कि वाटर लेवल को कायम रखने में सहायक होता है।
*जल, जंगल, जमीन सिर्फ नारा नहीं, हमारी पहचान है- डॉ.विजय धस्माना*
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने कहा कि जल, जंगल, जमीन सिर्फ नारा नहीं बल्कि हमारी पहचान है। भावी पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य के लिए जरूरी है जल संरक्षण। उन्होंने लोगों से जल के इस्तेमाल को औषधि की तरह सीमित मात्रा में इस्तेमाल करने की अपील की।
*जल आपूर्ति व संरक्षण के क्षेत्र में एसआरएचयू की उपलब्धियां*
-रोजाना 07 लाख लीटर पानी को रिसाइकिल कर सिंचाई के लिए किया जाता है इस्तेमाल
-उत्तराखंड में 7000 लीटर क्षमता के 600 से ज्यादा जल संरक्षण टैंक का निर्माण
-देशभर के 550 गांवों में स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता योजनाओं का निर्माण करवाया
-भारत सरकार के राष्ट्रीय जल जीवन मिशन के सेक्टर पार्टनर के तौर पर चयन
-24 राज्यों के पब्लिक हेल्थ इंजीनियर्स को दे रहा ट्रेनिंग
-विभिन्न गांवों में 314 जल व स्वच्छता समितियों का गठन
-14 हजार से ज्यादा शौचालय का निर्माण
-17 हजार से ज्यादा लोगों को इस क्षेत्र में प्रशिक्षण