
ऋषिकेश।उत्तराखंड सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को उच्च चिकित्सकीय सेवाओं का लाभ देने के उद्देश्य से ऋषिकेश में एम्स की स्थापना की गई। लेकिन एम्स प्रशासन के भ्रष्ट तंत्र और कुछ स्वार्थी अधिकारियों के कारनामों के चलते एम्स ऋषिकेश हमेशा से विवादों में रहा है। ऐसा ही एक मामला फिर सामने आया है, जहां अयोग्य चिकित्सकों को निजी स्वार्थ के चलते लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने के लिए नियुक्ति दे दी गई है।
एम्स ऋषिकेश का विवादों से इतना गहरा नाता रहा है कि कोरोना काल में एम्स में दवाइयां भी समुद्री जहाज से पहुंची हैं। मात्र इस घटनाक्रम से ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि एम्स में कितने बड़े-बड़े घोटालों की भरमार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज की पहल पर गरीबों को उच्च स्वास्थय सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से उत्तराखंड के ऋषिकेश में एम्स की नींव रखी थी। लेकिन कुछ तथाकथित भ्रष्ट पदाधिकारियों ने एम्स को कमाई और दलाली का साधन बना लिया। जिसके चलते स्थापना से ही एम्स ऋषिकेश का विवादों से गहरा नाता रहा है। अब एक और नया मामला सामने आया है। जिसमें अयोग्य चिकित्सकों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति दे दी गई है और लोगों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इन संदिग्ध नियुक्तियों में डॉ निशांत गोयल डॉ नवनीत कुमार एवं डॉ सुधीर कुमार सक्सेना के नाम शामिल हैं। जिसको लेकर डॉ जया चतुर्वेदी एवं डॉ मनोज गुप्ता की संयुक्त जांच कमेटी भी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर चुकी है। डॉक्टर सुधीर सक्सेना जो कि रेडियोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। साथ ही मुख्य सतर्कता अधिकारी एम्स ऋषिकेश के पद पर आसीन हैं और एम्स की खरीद-फरोख्त कमेटी के मुख्य कर्ताधर्ता भी हैं। इनकी खुद का नियुक्ति भी संदेह के घेरे में है। एम्स के पूर्व निदेशक अरविंद राजवंशी के कार्यकाल में नियुक्तियों की जांच के लिए कमेटी बैठाई गई थी। उनकी रिपोर्ट वर्तमान एम्स निदेशक डॉ मीनू सिंह सिंह ने आखिर क्यों दबा रखी है और इसमें आखिर उनकी क्या मजबूरी या किसका दबाव है। वही डॉ कुमार सतीश रवि ने वर्ष 2011 में अपनी एमडी पास की थी। लेकिन एम्स में नियुक्ति के दौरान उन्होंने झूठा शपथ पत्र देकर यह घोषणा की कि उन्होंने एमडी 2009 में पास की है। यह फर्जी और 420 करके उन्होंने एम्स ऋषिकेश में नौकरी हथियाई और अनेकों होनहार लोगों का अधिकार भी मार लिया। एम्स ऋषिकेश के प्रथम निदेशक डॉ राजकुमार ने इसकी जांच पर कोई कार्रवाई नहीं की। उसके बाद पूर्व निदेशक डॉ रवि कांत ने डॉ कुमार सतीश रवि के दो प्रमोशन कर दिए और एम्स का डीन भी नियुक्त कर दिया। लेकिन ऐसे संगीन मामलों में एम्स निदेशक द्वारा चुप्पी साधे रहना भी अनेकों सवाल खड़े करता है। अब देखना यह होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी की जीरो टॉलरेंस की सरकार एम्स ऋषिकेश के भ्रष्ट तंत्र पर क्या एक्शन लेती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन एम्स ऋषिकेश के कई घोटालों का खुलासा होने के बावजूद भी प्रधानमंत्री इस भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन लेने में हमेशा उदासी नजर आए हैं। हालांकि पूर्व में एम्स में सीबीआई की रेड भी डाली गई और कई अधिकारियों को दोषी भी पाया गया। लेकिन कोई कड़ा एक्शन किसी भी भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ आज तक नहीं लिया गया है। इसके पीछे माजरा क्या है यह तो केवल भाजपा सरकार, सीबीआई अधिकारी और एम्स का भ्रष्ट प्रशासन ही बता सकता है। इसके अलावा एम्स ऋषिकेश के अधिकारी अनेकों घोटाले कर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ मनसुख मांडविया को भी खुलेआम चुनौती दे रहे हैं।