धर्म-कर्म
न्याय का दरबार है गोलू देवता का मंदिर
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देहरादून। चम्पावत में न्यायप्रिय राजा नागनाथ का शासन हुआ करता था। वृद्ध हो जाने तक भी नागनाथ की कोई संतान न थी। उन दिनों सैमाण के जलाशय में एक मसाण रहा करता था, जिसका नाम जटिया था. वह लोगों को मारकर खा जाया करता था ओर राहगीरो को लूट लेता। जटिया के आतंक से तंग होकर जनता ने राजा नागनाथ से गुहार लगायी। वृद्ध होने के कारण नागनाथ खुद मसाण का वध करने में अक्षम था। मांत्रियो ने सलाह दी कि इस काम के लिए लोककल्याणकारी गोलू देवता की सहायता ली जाए। एक दूत के हाथों स्थिति का विवरण देते हुए एक पत्र गोलू देवता के पास धूमाकोट भिजवाया गया. गोलू देव ने यह आमंत्रण स्वीकार कर लिया। पिथौरागढ़, रामेश्वर होते हुए वे लोहाघाट में गुरु गोरखनाथ के आश्रम पहुंचे। रामेश्वर मैं वीरा मसाण ने उनका राज स्वीकार किया ओर उनका खूब आदर सत्कार किया। अंत में चम्पावत पहुँचने पर नागनाथ और राज्य की पीड़ित जनता ने उनका भव्य स्वागत किया. जटिया के आतंक और उत्पीड़न की बातें सुनकर गोलू बड़े दुखी हुए. उन्होंने तत्काल जटिया का दमन करने के लिए सैमाण घाट जाने का फैसला किया। जटिया सैमाण के एक जलाशय में रहता था. गोलू देव ने उस जलाशय के किनारे पहुंचकर उसे युद्ध के लिए ललकारा. ललकार सुन वह अट्टहास करता हुआ बाहर आया। दोनों के बीच 3 दिन और 3 रात तक घमासान युद्ध हुआ। अंत में गोलू ने उसे पराजित किया। उसे जिंदा पकड़कर गोलू चम्पावत गढ़ी में नागनाथ के समक्ष ले आए ओर उसे बालों से पकड़ कर शिला से बाध दिया। जनता के हर्सोल्लास का ठिकाना न रहा. गोलू देव की जयजयकार होने लगी. संतानहीन नागराज गोलू के इस कार्य से इतना प्रसन्न हुए कि उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। वे गोलू देव को सिंहासन पर बिठाकर स्वयं तपस्या करने वन में चले गए। गोलू चम्पावत से समस्त कुमाऊँ का शासन प्रबंध देखने लगे। गोलू स्वयं सारे राज्य में घूम-घूमकर जनता की व्यथा सुनते और उन के कष्ट का निवारण करते. अन्यायी को दण्डित कर पीड़ित को न्याय दिलवाते. इसी कारण न्याय के देवता के रूप में उन्हें पूजा जाता है।
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