मसूरी वन प्रभाग से करीब सात हजार पिलर गायब, चीफ कंजरवेटर ने प्रमुख वन संरक्षक को जांच के लिए लिखा पत्र
डीएफओ बोले की जा रही विस्तृत जांच

मसूरी। मसूरी वन प्रभाग इन दिनों चर्चाओं में है। प्रभाग क्षेत्र से करीब सात हजार पिलर गायब होने की बात कही जा रही हैं। इन्हीं पिलरों से वन क्षेत्र की सीमा को बताया जाता है। इस मामले में हाल ही में चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग प्लान संजीव चतुर्वेदी ने प्रमुख वन संरक्षक हॉफ को पत्र लिखा था और उन्होंने पूरे मामले की एसआईटी या सीबीआई जांच कराने की बात रखी है। अब इस मामले पर मसूरी वन प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर का बयान आया है। उन्होंने इस तरह के सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया है।
मसूरी वन प्रभाग के वन प्रभागीय अधिकारी अमित कंवर ने साफ कहा है कि ना तो मुनारे (पिलर्स) गायब हैं, न कोई घोटाला हुआ है, जो खबर फैलाई जा रही हैं, वो पूरी तरह भ्रामक, अधूरी जानकारी और दुर्भावनापूर्ण मंशा से प्रेरित है।
डीएफओ अमित कंवर ने कहा कि साल 2023 में ही वन विभाग ने मसूरी वन प्रभाग के अंतर्गत आने वाले लगभग 40,000 हेक्टेयर क्षेत्र में एक व्यापक सर्वेक्षण कराया था, जिसमें यह देखा गया कि कुल 7375 मुनारे (बाउंड्री पिलर्स) अनुलब्ध है, जो उस समय फील्ड में दिखाई नहीं दिए, जिस पर अब सवाल उठाए जा रहे हैं।
डीएफओ अमित कंवर की मानें तो कई इलाके इतने घने जंगलों और झाड़ियों से ढके हैं कि मुनारों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। कहीं-कहीं तो पिलर्स ही भूस्खलन में दब गए हैं, और कई स्थान इतने दुर्गम हैं कि पहले टीम वहां जा ही नहीं पाई। इसका मतलब यह नहीं कि पिलर्स गायब हैं। डीएफओ ने बताया कि अब इस संबंध में एक डिटेल्ड रीसर्वे शुरू कराया गया है, जिसमें सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शों और जीपीएस कोऑर्डिनेट्स की मदद से मुनारों को चिन्हित कर उन्हें दोबारा स्थापित किया जा रहा है।
अमित कंवर ने बताया कि विभाग के फील्ड स्टाफ की मासिक डायरियों में यह दर्ज होता है कि भ्रमण के दौरान किस क्षेत्र में कौन-सी मुनारें दिखाई दीं, कौन-सी क्षतिग्रस्त थीं, या कहां अतिक्रमण का संकेत मिला। उन्होंने कहा कि पिछले एक वर्ष की डायरियों में मुनारों की कोई विशेष कमी या छेड़छाड़ का जिक्र नहीं है। फिर भी हमने फील्ड अधिकारियों की रिपोर्ट को भी इस जांच में जोड़ा है, ताकि स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो सके।
ऐसे भी कहा जा रहा है कि पिलर्स नहीं होने पर वन विभाग की जमीन पर अतिक्रमण हुआ है। इस पर डीएफओ ने स्पष्ट किया कि कोई भी अतिक्रमण तभी माना जाएगा, जब उसका पुख्ता सर्वे, नक्शों और राजस्व रिकॉर्ड से प्रमाण मिले। केवल पिलर्स अस्थायी रूप से न दिखने का मतलब यह नहीं कि अतिक्रमण हुआ है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 2024 से अब तक विभाग ने 35.9 हेक्टेयर वन भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया है, जबकि 13.43 हेक्टेयर भूमि पर इंडियन फॉरेस्ट एक्ट के तहत मुकदमा चल रहा है।
डीएफओ अमित कंवर की संपत्ति को लेकर भी कई सवाल उठ रहे है। उस पर उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि मेरी और मेरे परिवार की सारी संपत्तियां स्वयं के वैध स्रोतों से अर्जित हैं। प्रत्येक वर्ष मेरी संपत्तियों का विवरण आईपीआर (इमूवेबल प्रॉपर्टी रिटर्न) के तहत शासन को दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि जो लोग मेरे खिलाफ साजिश कर रहे हैं, वे झूठी खबर फैलाकर मेरी निजी और पेशेवर छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, वो ऐसे लोगों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज कराएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी संपत्तियों का मुनारों या वन भूमि से कोई संबंध नहीं है और दोनों मुद्दे पूरी तरह स्वतंत्र हैं। डीएफओ अमित कंवर ने बताया कि मुनारों को लेकर विभाग ने फेज वाइज एक्शन प्लान तैयार किया है, जिसके तहत मुनारों को जीपीएस लोकेशन के आधार पर पुनः चिन्हित और स्थापित किया जाएगा। सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शे, फील्ड रिपोर्ट्स और स्थानीय रिकॉर्ड्स का मिलान किया जा रहा है। वही अतिक्रमण के मामलों की जांच और विधिसम्मत कार्रवाई होगी। वह झूठी खबरें फैलाने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।