
यमुनोत्री (20 मीटर प्रतिवर्ष), बद्रीनाथ (17.3 मीटर प्रतिवर्ष) और केदारनाथ (14.1 मीटर प्रतिवर्ष) घट रहे ग्लेशियर
1990 से 2020 के बीच सभी मौसमों में तापमान लगातार बढ़ा
देहरादून। एक नए वैज्ञानिक आंकलन ने उन तेजी से पिघलते ग्लेशियरों को लेकर चेतावनी जारी की है, जो उत्तराखंड के चारधाम गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ को पानी उपलब्ध कराते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि ग्लेशियरों के तीव्र गति से पिघलने से इस क्षेत्र में बाढ़, भूस्खलन और चरम मौसमी घटनाओं का खतरा नाटकीय रूप से बढ़ रहा है।
प्रकृति के ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में ग्लेशियरों के व्यवहार, जलवायु रुझान, भू-भाग की नाजुकता, जैव विविधता की संवेदनशीलता और चारों तीर्थ क्षेत्रों पर पर्यटन के दबाव का विश्लेषण किया गया है। यह रिपोर्ट चारधाम क्षेत्र का अब तक का सबसे विस्तृत ‘भू-दृश्य जोखिम प्रोफाइल’ प्रस्तुत करती है।
अध्ययन के अनुसार, गंगोत्री ग्लेशियर सबसे तेज गति से पीछे हट रहा है, जिसकी वार्षिक घटने की दर 22.3 मीटर है। इसके बाद यमुनोत्री (20 मीटर प्रतिवर्ष), बद्रीनाथ (17.3 मीटर प्रतिवर्ष) और केदारनाथ (14.1 मीटर प्रतिवर्ष) का स्थान आता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तेजी से बर्फ घटने का कारण बढ़ते तापमान, कम होती बर्फ की परत और बारिश के बेहद अस्थिर पैटर्न हैं। सैटलाइट डेटा बताता है कि 1990 से 2020 के बीच सभी मौसमों में तापमान लगातार बढ़ा है, और सबसे तेज वृद्धि प्री-मानसून और मानसून महीनों में दर्ज की गई है।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि यमुनोत्री घाटी में बारिश के पैटर्न में तेज उतार-चढ़ाव देखा गया है, जहां हाल के दशकों में मानसून के दौरान अनियमित वर्षा में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई है।
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि ग्लेशियरों के सिकुड़ने और मौसम के बदलते पैटर्न के कारण ऊँचाई वाले ढलानों की स्थिरता प्रभावित हो रही है। इससे ड्रेनेज चौनल बदल रहे हैं और अचानक आने वाली बाढ़ (फ्लैश फ्लड), ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) और भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है।
विश्लेषण में पाया गया है कि चारधाम क्षेत्र का बड़ा हिस्सा खड़ी ढलानों और ऊँचाई वाले इलाकों में स्थित है, जहां मामूली जल-चक्र में बदलाव भी बड़े पैमाने पर प्राकृतिक आपदाओं को जन्म दे सकता है। उदाहरण के लिए, गंगोत्री क्षेत्र का लगभग 60.6 प्रतिशत भू-भाग 4,200 मीटर से ऊपर स्थित है, जिससे वहां की मानव बस्तियां और तीर्थ मार्ग संवेदनशील स्थिति में हैं।
इसके अलावा, सामुदायिक आधारित पर्यटन को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ पहुंचाया जा सकता है और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर दबाव भी कम किया जा सकता है।
जलवायु संकट बढ़ाने वाला एक और कारक है तीर्थयात्रियों का अभूतपूर्व दबाव।
पर्यटन आगमन, जो शुरुआती 2000 के दशक में लगभग 1 मिलियन था, वह 2022 में बढ़कर 3 मिलियन से अधिक हो गया।
अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि
ऽ उन्नत मौसम रडार लगाए जाएं
ऽ रियल-टाइम विज़िटर मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित किए जाएं
ऽ सैटेलाइट-आधारित ईको-रूट्स के जरिए पर्यटन को विकेंद्रीकृत किया जाए
ऽ चारधाम मार्गों पर इलेक्ट्रिक या बीएस-6 वाहन प्राथमिकता पर चलाए जाएं





