पौड़ी। उत्तराखंड की लोक संस्कृति और विरासत आज भी लोग संजोए हुए हैं। जहां एक ओर बीते दिन पूरे प्रदेश में बसंत पंचमी की धूम रही,दूसरी ओर गढ़वाल मंडल के पौड़ी जिले के च्वींचा गांव में गैंडी वध का आयोजन किया गया। जिसका संबंध महाभारत काल की घटनाओं से जोड़ा जाता है। जिसमें बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की और गैंडी वध के मंचन का लुप्त उठाया।
एक सदी से भी ज्यादा समय से मनाया जाने वाला यह त्यौहार च्वींचा गांव की एक अनोखी लोक विरासत है, जो आज भी उत्साहित होकर बड़े धूमधाम से एक मेले के रूप में मनाई जाती है। इस दिन गांव की विवाहित (ध्याणी) को पूजा अनुष्ठान और मेले में आमंत्रित किया जाता है जो अतिथि परंपरा की एक पहचान है। मेले में जो गैंडी वध का मंचन व प्रदर्शन किया जाता है। दरअसल वह महाभारत की कथा का एक छोटा सा अंश है।
संस्कृति कर्मी व ग्रामीण मनोज रावत अंजुल ने बताया कि कथा का सार इस प्रकार है कि पांच पांडवों के पिता पांडू की मृत्यु के बाद उनके कुल पुरोहित की सुझाई गई एक युक्ति का यह प्रसंग है। पांडू के श्राद्ध के लिए पुरोहित ने पांडवों को यह सुझाव दिया गया कि, वैधानिक परिस्थितियों के अनुरूप श्राद्ध कर्म के लिए गैंडी (मादा गैंडा) की खकोटी की आवश्यकता होगी। लेकिन यह काम जितना उत्तम है, उतना कठिन भी है। गैंडों के समूह में एक विलक्षण गैंडी है, जो हिमालय की कंदराओं में किसी चरवाहे के पास है, उस चरवाहे का नाम नागमल व उसके साथ उनकी देखभाल करने वाली उसकी बहन नागमली है, गैंडी का नाम ‘सीता रामा’ गैंडी है। यह काम कठिन इसलिए है कि नागमल एक बहुत ही बलवान योद्धा है और ‘सीता रामा’ को पांडवों को सौंपने में वह अवश्य ही आनाकानी करेगा, सीतारामा वैसे भी बहुत प्रिय है।