उत्तराखंडप्रशासन

*उत्तराखण्ड में राधा रतूड़ी बनी पहली मुख्य सचिव*

सचिव शैलेश बगोली ने जारी किए आदेश जारी

डा. संधु के रिटायर होने के बाद आज संभालेंगी पदभार
देहरादून। आखिरकार उत्तराखंड में नए मुख्य सचिव के नाम पर सस्पेंस खत्म हो गया है। आईएएस राधा रतूड़ी उत्तराखंड की अगली मुख्य सचिव होंगी। राधा रतूड़ी को मुख्य सचिव बनाये जाने को लेकर कार्मिक विभाग ने आदेश जारी कर दिया है। आईएएस राधा रतूड़ी आज उत्तराखंड के मुख्य सचिव का पदभार संभालेंगी।
बता दें कि उत्तराखंड के वर्तमान मुख्य सचिव एसएस संधू आज रिटायर हो रहे हैं। उनके बाद उत्तराखंड की कमान आईएएस राधा रतूड़ी को दी गई है। इस समय देश में केवल तीन महिला मुख्य सचिव हैं। आईएएस राधा रतूड़ी इस कड़ी में चौथी महिला होंगी, जो ब्यूरोक्रेसी की बॉस बनेंगी। वहीं, तेलंगाना में अबतक सबसे अधिक महिला मुख्य सचिव हुई हैं।
राधा रतूड़ी 1988 बैच की आईएएस अधिकारी हैं। वो फिलहाल शासन में अपर मुख्य सचिव की जिम्मेदारी देख रही हैं। राधा रतूड़ी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की करीबी अफसरों में गिनी जाती हैं। राधा रतूड़ी के पास अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी भी है। राधा रतूड़ी उत्तराखंड कई बड़ी जिम्मेदारियां संभल चुकी हैं। वो कई जिलों की जिलाधिकारी रही। महिला एवं सशक्तिकरण विभाग में राधा रतूड़ी ने लंबे समय तक काम किया।
उत्तराखंड के अलावा राधा रतूड़ी चार राज्यों में सेवाएं दे चुकी हैं। राधा रतूड़ी इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में चयनित होने के बाद उज्जैन पहुंचीं, यहां उन्होंने प्रशासन की ट्रेनिंग ली। मध्य प्रदेश में काम करने के बाद उन्होंने कैडर चेंज किया। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के बरेली में पोस्टिंग ली। इसी दौरान आईपीएस अनिल रतूड़ी के नेशनल पुलिस अकादमी हैदराबाद में जाने पर राधा रतूड़ी ने स्टडी लीव ली। वो प्रतिनियुक्ति पर आंध्र प्रदेश में भी पोस्टिंग ली। साल 1999 में वह वापस उत्तर प्रदेश आई। इसके बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ। तब से वो उत्तराखंड में काम कर रही हैं।

जर्नलिस्ट से ब्यूरोक्रेसी के सबसे बड़े पद तक का सफर
देहरादून। अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी उत्तराखंड में ब्यूरोक्रेसी के सबसे बड़े पद पर पहुंचने को लेकर चर्चाओं में हैं। लेकिन राधा रतूड़ी का मुख्य सचिव पद तक पहुंचने का यह सफर इतना आसान नहीं था। मूल रूप से मध्य प्रदेश के जबलपुर की रहने वालीं राधा श्रीवास्तव (शादी के बाद राधा रतूड़ी) पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना भविष्य तलाशना चाहती थीं। अपनी स्कूलिंग पूरी करने के बाद राधा रतूड़ी ने मुंबई में पोस्ट ग्रेजुएशन मास कम्युनिकेशन से किया। पत्रकारिता के क्षेत्र में भविष्य तलाश रहीं राधा रतूड़ी ने इंडियन एक्सप्रेस बॉम्बे में ट्रेनिंग ली, जबकि इसके बाद इंडिया टुडे मैगजीन में भी उन्होंने काम किया। साल 1985 के दौरान अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन करने और फिर पत्रकारिता के क्षेत्र में हाथ आजमाने के दौरान ही उनके जीवन में टर्निंग प्वाइंट उस समय आया, जब उनके पिता ने उन्हें सिविल सर्विस में जाने की सलाह दी।

सबसे पहले आईआईएस में हुआ सिलेक्शन
देहरादून। राधा रतूड़ी के पिता सिविल सर्विस में ही थे। उनके पिता बीके श्रीवास्तव आईआरएस हैं। लिहाजा, वह चाहते थे कि उनकी बेटी राधा भी सिविल सर्विस में जाए। अपने पिता की सलाह को मानते हुए उन्होंने यूपीएससी की तैयारी कर इस परीक्षा को देने का फैसला लिया। इस तरह राधा रतूड़ी ने सिविल सर्विस की परीक्षा देते हुए इंडियन इंफॉर्मेशन सर्विस (आईआईएस) में सिलेक्शन पाने में कामयाबी हासिल की। साल 1985-86 के दौरान ही उनका चयन होने के बाद उन्हें नियुक्ति लेने के लिए दिल्ली जाना था। राधा रतूड़ी दिल्ली भी आईं, लेकिन उन्हें दिल्ली का माहौल कुछ पसंद नहीं आया। करीब 22 साल की उम्र में सिविल सर्विस की परीक्षा क्रैक करने के बाद जब उनका मन दिल्ली में नहीं लगा तो उन्होंने एक बार फिर यूपीएससी की परीक्षा देने का फैसला लिया। अगले ही प्रयास में राधा रतूड़ी ने इंडियन पुलिस सर्विस (आईपीएस) में जगह बनाने में कामयाबी हासिल कर ली।

आईएएस से पहले रह चुकी हैं आईपीएस
देहरादून। साल 1987 में वह आईपीएस में चयनित होने के बाद हैदराबाद में ट्रेनिंग के लिए आईं, जहां उनकी मुलाकात 1987 बैच के ही आईपीएस अनिल रतूड़ी से हुई। मुलाकात प्यार में बदल गई और फिर बात शादी तक भी जा पहुंची। इस दौरान इंडियन पुलिस सर्विस में बार-बार होने वाले तबादलों के कारण दोनों को ही अपनी तैनाती के लिए अलग-अलग रहना पड़ा। इसके बाद फिर राधा रतूड़ी के पिता ने बेटी को आईएएस के लिए प्रयास करने की सलाह दी।

चार राज्यों में दी सेवाएं
देहरादून। राधा रतूड़ी ने देश के चार राज्यों में अपनी सेवाएं दी हैं। इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में चयन के बाद उज्जैन में अपनी प्रशासन की ट्रेनिंग ली। मध्य प्रदेश में काम करने के बाद अपने कैडर चेंज होने पर उन्हें उत्तर प्रदेश के बरेली में पोस्टिंग मिली। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश में विभिन्न जिम्मेदारियां को देखा। इसी दौरान आईपीएस अनिल रतूड़ी के नेशनल पुलिस अकादमी हैदराबाद में जाने पर राधा रतूड़ी ने स्टडी लीव लेने का फैसला लिया। जबकि इसके बाद वह प्रतिनियुक्ति पर आंध्र प्रदेश में भी पोस्टिंग लेकर उन्होंने दो साल जॉइंट सेक्रेटरी के रूप में काम किया। साल 1999 में वह वापस उत्तर प्रदेश आ गईं। लेकिन इसके बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ, जिसके बाद राधा रतूड़ी ने उत्तराखंड कैडर ले लिया।

टिहरी विस्थापितों के लिए निभाई अहम भूमिका
देहरादून। राधा रतूड़ी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कई जिलों में जिलाधिकारी के तौर पर काम देखा है। इतना ही नहीं, उत्तराखंड में करीब 10 साल तक उन्होंने चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर के तौर पर भी काम किया है। टिहरी विस्थापन के दौरान उनके फैसलों ने टिहरी विस्थापितों को बहुत मदद दी। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में उन्होंने दिव्यांगजनों के लिए भी कई प्रयास किए। इतना ही नहीं, राधा रतूड़ी उत्तराखंड में लड़कियों की शिक्षा और उनके बेहतर कार्यों के लिए व्यक्तिगत रूप से भी वित्तीय मदद करती रही हैं। राधा रतूड़ी का टिहरी के हिंडोलाखाल में ससुराल है।

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